**ब्राह्मण धर्म के पास ऐसा कुछ भी नहीं था, जिसे संस्कारवान या नैतिकता कहा जाये। अतः उन्होंने बुद्ध की शिक्षाओं को चुराना शुरू किया और ब्राह्मण धर्म का ठप्पा (मुहर) लगाकर बाजार (समाज) में उतार दिया।*
*कैसे ?*
(1) *गुरु पूर्णिमा* :- गौतम बुद्ध ने आषाढ़ पूर्णिमा के दिन सारनाथ में प्रथम बार पांच परिज्रावको को दीक्षा दी थी। ये दिन बौद्धों के जीवन में गुरु पूर्णिमा के नाम से जाना जाता था। बौद्ध धर्म समाप्त करने के बाद ब्राह्मण धर्म के ठेकेदारो ने इस पर कब्ज़ा किया।
(2) *कुम्भ मेला* :- कुम्भ का मेला बौद्ध सम्राट हर्षवर्धन ने शुरू करवाया था जिसका उद्देश्य बुद्ध की विचारधारा को फैलाना था। इस मेले में दूर दूर से बौद्ध भिक्षु, श्रमण,राजा,प्रजा, सैनिक भाग लेते थे। बौद्ध धर्म समाप्त करने के पश्चात ब्राह्मणों ने इसको अपने धर्म में लेकर *अन्धविश्वास* घुसा दिया।
(3) *चार धाम यात्रा* :- बौद्ध धर्म में चार धामों का विशेष महत्त्व था। ब्राह्मणों ने बौद्ध धर्म के चार धामो को अपने काल्पनिक देवी-देवताओ के मंदिरो में बदल दिया और अपने धर्म से जोड़ दिया।
(4) *जातक कथाएँ* :- जातक कथाये बौद्ध धर्म में विशेष महत्त्व रखती है। इन कथाओ द्वारा बौद्धिस्ट की दस परमिताओं को समझाया जाता था। कुछ कथाये गौतम बुद्ध काल की और कुछ बाद की लिखी गयी है। बौद्ध धर्म समाप्त करने के पश्चात ब्राह्मणों ने इन कथाओ का ब्रह्मणीकरण करके अपने धर्म में लिया और इन कथाओ में कुछ काल्पनिक कथाये, कुछ ऐतिहासिक बौद्ध स्थलो को जोड़कर रामायण और महाभारत की रचना की गयी।
(5) *विजयादशमी (दशहरा)* :- सम्राट अशोक ने कलिंग विजय के पश्चात अश्विन दशमी के दिन बौद्ध धम्म स्वीकार किया था। ये दिन *अशोका विजयदशमी* के रूप में जाना जाता था।इसी दिन ब्राह्मण सेनापति पुष्यमित्र शुंग ने मौर्य वंश के 10वें सम्राट *वृहदर्थ मौर्य* की हत्या की थी। मौर्य सम्राट दस परमिताओं का रक्षक था। दस परमिताओं का रक्षक हार गया। प्रतिक के रूप में मौर्य वंश के 10 राजाओं के सिरों का दहन ही दशहरा था।
बौद्ध धर्म समाप्त करने के पश्चात ब्राह्मणों ने इस दिन को काल्पनिक कथा रामायण के राम-रावण से जोड़कर दशहरा बना दिया। तुलसीदास की रामचरितमानस के अनुसार रावण चैत्र के महीने में मारा गया था।
(6) *दीपदानोत्सव* :- गौतम बुद्ध को ज्ञान प्राप्त होने के पश्चात जब गौतम बुद्ध कपिलवस्तु आये थे तो उनके पिता ने उनके आने की ख़ुशी में नगर को दीपो से सजाया था। सम्राट अशोक ने 84000 बौद्ध स्तूप/चैत्य/ विहार बनवाये थे। इन स्तूप/चैत्य/विहारों का उदघाटन कार्तिक अमावस्य के दिन दीप जलाकर किया था और ये दिन *दीपदानोत्सव* के नाम से जाना जाता था। क्योंकि ये चैत्य/ विहार/स्तूप भारतवर्ष में ही थे इसलिए ये त्यौहार केवल भारत तक ही सिमित था। बौद्ध धर्म समाप्त करने के पश्चात ब्राह्मण धर्म ने इस त्यौहार को काल्पनिक कथा रामायण के पात्र राम से जोड़ दिया।
(7) *लिंग-योनि पूजा* :- पुष्यमित्र शुंग की प्रतिक्रांति के बाद प्रथम शताब्दी में शुरू हुई। ब्राह्मण धर्म ने बौद्धों से कहा कि ईश्वर है जिसने ये संसार बनाया है और तुम्हे भी बनाया है।
बौद्धों ने ब्राह्मणों से कहा कि ईश्वर कल्पनामात्र है। ये दुनिया लिंग-योनि की क्रिया के कारण पैदा हुई है और प्राकृतिक है। ब्राह्मणों ने प्रतिक्रिया स्वरूप बौद्धों से ताकत के बल पर लिंग-योनि की मूर्ती पुजवाई। बाद में इसको मनगढ़ंत कहानी द्वारा पुराणों में शिव से जोड़ दिया और अंधविश्वासी लोग लिंग-योनि को शिव-लिंग मानकर पूज रहे है।
(8) *ब्राह्मणों के व्यावसायिक केंद्र (मंदिर)* :- आज जहाँ-जहाँ पर ब्राह्मणों के काल्पनिक देवी-देवताओ के बड़े-बड़े मंदिर है वहाँ कभी बौद्ध धर्म के केंद्र होते थे,जैसे-अयोध्या, काशी, मथुरा,पुरी ,द्वारका, रामेश्वरम, केदारनाथ, बद्रीनाथ,तिरुपति, पंढरपुर , शबरिमला आदि। बौद्ध धर्म समाप्त करने के पश्चात ब्राह्मणों ने उन्हें मंदिरो में बदल दिया। आप जाकर देखिये वर्तमान में तिरुपति बालाजी के मंदिर में मूर्ति स्वयं गौतम बुद्ध की है। इस बौद्ध मंदिर पर ब्राह्मणों ने कब्ज़ा करके बुद्ध को आभूषण और कपडे पहना दिए और उसका नाम अलग-अलग रख दिया। कोई इसको बालाजी,कोई वेंकटेश्वर, कोई शिव,कोई हरिहर,कोई कृष्ण,कोई शक्ति बोलता है।
(9) *पीपल पूजा* :- भारत के मूलनिवासी प्रकृति पूजक थे। पीपल के पेड़ के नीचे गौतम बुद्ध को ज्ञान प्राप्त हुआ था इसलिए पीपल की पूजा का महत्त्व और भी बढ़ गया था। ब्राह्मणों ने बौद्ध धर्म समाप्त करने के पश्चात पीपल के पेड़ के नीचे एक पत्थर गाड़ दिया और इसे पिपलेश्वर महादेव (ब्रह्म बाबा) बना दिया।
(10) *वट वृक्ष पूजा* :- गौतम बुद्ध ने पहला उपदेश सारनाथ में वट वृक्ष के नीचे दिया था इसलिए लोग वट वृक्ष को भी पूजने लगे थे।बौद्ध धर्म समाप्त करने के पश्चात ब्राह्मणों ने इसेअपने धर्म में लेकर सत्यवान- सावित्री की काल्पनिक कथा से जोड़ दिया।
(11) *सिर का मुंडन* :- बौद्ध भिक्षु अपने सिर के बाल मुंडवाकर रखते थे। बौद्ध धर्म समाप्त करने के पश्चात ब्राह्मणों ने बौद्ध धर्म के प्रति नफरत फैलाने के लिए मृत्यु के पश्चात परिवार के लोगो का सिर मुड़वाने की प्रथा की शुरुआत की।
ये लेख ब्राह्मणवाद की विकृति दर्शाता है इस पर विचार करें किन्तु अधिक तर्क/ प्रमाण से परहेज करें।
जय भीम 📚 जय भारत