जय भीम
kanshiram
मान्यवर कांशीराम साहब जी की जयंती पर हम सभी उन्हें शत्-शत् नमन करते हैं।
कांशीराम साहब एक ऐसे व्यक्ति थे, जो दलितों की समस्याओं को समझते थे और उनके लिए आवाज उठाते थे। उन्होंने एक ऐसे आंदोलन का आरंभ किया, जो दलितों को उनके अधिकारों के लिए लड़ने की शक्ति देता है।
कांशीराम साहब के जन्मदिन पर हमें उनके जीवन और उनके कार्यों को याद रखना चाहिए। उनके संघर्ष से नहीं सिर्फ दलित समुदाय को एक नई पहचान मिली बल्कि समाज के विभिन्न वर्गों को भी समझने और समानता की ओर अग्रसर करने का मौका मिला।
उन्होंने दलितों को उनके सामाजिक अधिकारों के लिए लड़ने के लिए एक नया मार्ग दिखाया। उनके द्वारा बनाए गए बहुजन समाज पार्टी के जरिए, उन्होंने दलित समुदाय के साथ-साथ अन्य पिछड़े वर्गों को भी जोड़ा। इससे न केवल दलितों की ताक़त बढ़ी बल्कि समाज के अन्य वर्गों को भी समझने का मौका मिला।
आज हम मान्यवर कांशीराम साहब जी की जयंती मना रहे हैं। कांशीराम साहब एक महान नेता थे जिन्होंने बहुजन समाज के लिए लड़ाई लड़ी थी। उन्होंने भारतीय राजनीति में एक नया धार्मिक एवं सामाजिक आंदोलन शुरू किया था, जिससे सभी वर्गों के लोगों का सम्मान हो सके।
कांशीराम साहब ने बहुजन समाज के लिए एक नया संघर्ष शुरू किया था, जिसका उद्देश्य सभी लोगों को एक समान समाज के रूप में जोड़ना था। उन्होंने अपने विचारों के माध्यम से बहुजन समाज को सशक्त बनाने का काम किया और उन्हें एक नया दिशा दिया।
कांशीराम साहब का संघर्ष बहुजन समाज के लिए आज भी एक मिसाल है। उनकी लड़ाई और उनके विचार आज भी हमारे लिए एक प्रेरणा का स्रोत हैं। उन्होंने बहुजन समाज को उनकी सही अस्तित्व में लाने का काम किया था।
मा.काशीराम साहब जी का जिवन परिचय:
मा.काशीराम साहब
मा. कांशीराम जी की जीवन गाथा उनकी जीवनी के रूप में लिखी गई है। इसमें उनके जीवन के अनेक पहलुओं, संघर्षों, सफलताओं और विचारों को विस्तार से बताया गया है।
मा. कांशीराम जी पिर्थीपुर बुंगा ग्राम, खवसपुर, रूपनगर जिला, पंजाब (भारत)में 15 मार्च 1934 को कांशीराम का जन्म रैदासी सिख परिवार में हुआ। रैदासी समाज ने अपना धर्म छोड़कर सिख धर्म अपना लिया था इसलिए इन्हें 'रैदासी सिख परिवार' कहा जाता है। कांशीराम के पिता ज्यादा-पढ़े लिखे नहीं थे, लेकिन उन्होंने अपने बच्चों को उच्च शिक्षा देने की सोची। कांशीराम के 2 भाई और 4 बहनें थीं। कांशीराम सबसे बड़े होने के साथ भाई-बहनों में वे सबसे प्रिय थे।
मा. कांशीराम जी ने राजनीति में अपना करियर शुरू किया था। उन्होंने बाद में बहुजन समाज पार्टी की स्थापना की थी जिसका मुख्य उद्देश्य था दलितों, अति-पिछड़ों और अनुसूचित जातियों की समाज में समता और न्याय के लिए संघर्ष करना था।
मा. कांशीराम जी ने अपने जीवन में बहुत सारे संघर्ष और लड़ाई की हैं।
काशीराम साहब के संघर्ष:
काशीराम साहब एक भारतीय राजनीतिज्ञ थे, जिन्होंने बहुत से लोगों के लिए उद्यम किया था। उनके संघर्ष और विचारों का उल्लेख भारतीय राजनीति इतिहास में किया जाता है।
जन्म के बाद से ही, काशीराम साहब का जीवन बहुत संघर्षपूर्ण रहा है। वे दलित वर्ग से थे और उन्हें अपने जीवन में कई समस्याओं का सामना करना पड़ा। उनकी माता जी एक बेसहारा महिला थी और उन्हें दुनिया के सबसे गरीब लोगों में से एक माना जाता था।
काशीराम साहब ने बचपन से ही दलित वर्ग के लोगों के लिए समर्पित थे। उन्होंने एक ऐसी सोच विकसित की जो दलितों को समाज में समानता और अधिकार देने की दिशा में थी।
उन्होंने बहुत सारी अभूतपूर्व उपलब्धियों को हासिल किया था, जिनमें से एक उनके दलित समुदाय के लिए बनाया गया था। उन्होंने एक समाज के लिए लड़ाई लड़ी, जिसमें समानता और अधिकार के लिए लड़ना था।
काशीराम साहब ने दलित समुदाय के लिए बहुत सारे कार्य किये।
बहुजन नायक कांशीराम :
कांशीराम एक ऐसा नेता थे जिन्होंने दलितों, पिछड़ों, अनुसूचित जाति के लोगों और अन्य समाज के अल्पसंख्यकों के हकों के लिए लड़ाई लड़ी। उन्होंने अपने जीवन के अधिकांश समय में अपने समाज के लोगों की मदद करने में व्यतीत किया।
कांशीराम का जन्म एक दलित परिवार में हुआ था। वे उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर जिले में पैदा हुए थे। उन्होंने अपनी शिक्षा बीएससी और बीएलएलबी जैसी उच्च शिक्षा के साथ पूरी की।
कांशीराम ने बाद में राजनीति में अपना करियर शुरू किया और वे दलितों और पिछड़ों के हकों की लड़ाई लड़ने के लिए जुट गए। वे बहुजन समाज पार्टी (बीएसपी) की स्थापना करने वाले वे पहले भी बसपा के संस्थापक सदस्य थे।
कांशीराम को "बहुजन नायक" के रूप में जाना जाता है। उन्होंने बहुत सारे आंदोलनों और अभियानों में भाग लिया और दलितों, पिछड़ों, अनुसूचित जातियों और अल्पसंख्यकों के हकों के लिए लड़ाई लड़ी।
जातिवाद और समाजवाद:
कांशीराम साहब ने अपनी पुस्तक "जातिवाद और समाजवाद" में जातिवाद और समाजवाद दोनों के बारे में विस्तृत रूप से बताया है। उन्होंने इस पुस्तक में दोनों विषयों को एक साथ लेकर समझाने की कोशिश की है ताकि समाज को वर्गीय विभाजन से मुक्ति मिल सके।
कांशीराम साहब ने इस पुस्तक में जातिवाद के इतिहास, समस्याएं और उनके समाधान पर विस्तार से बताया है। उन्होंने बताया कि जातिवाद न केवल भारतीय समाज के लिए बल्कि दुनिया के अन्य क्षेत्रों के लिए भी एक महत्वपूर्ण समस्या है। उन्होंने जातिवाद के खतरों को भी बताया है, जैसे कि जातिवाद के कारण अलग-अलग जातियों के लोग एक-दूसरे से दूर रहते हैं और सामाजिक विकास में असमंजस का सामना करते हैं।
इसके साथ ही, कांशीराम साहब ने समाजवाद के आदर्शों और सिद्धांतों पर भी विस्तार से बताया है। उन्होंने समाजवाद के मूल सिद्धांतों जैसे सामाजिक न्याय, समानता, स्वतंत्रता और लोकतंत्र के बारे में बताया है।
बौद्ध धर्म और कांशीराम:
कांशीराम जी ने 14 अक्टूबर 2006 को डॉक्टर अम्बेडकर के धर्म परिवर्तन की 50 वीं वर्षगांठ के मौके पर बौद्ध धर्म ग्रहण करने की अपनी मंशा की घोषणा की थी. कांशीराम जी की मंशा थी कि उनके साथ उनके 5 करोड़ समर्थक भी इसी समय धर्म परिवर्तन करें. उनकी धर्म परिवर्तन की इस योजना का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा यह था कि उनके समर्थकों को केवल अछूत ही शामिल नहीं थे बल्कि विभिन्न जातियों के लोग भी शामिल थे, जो भारत में बौद्ध धर्म के समर्थन को व्यापक रूप से बढ़ा सकते थे. हालांकि, 9 अक्टूबर 2006 को उनका निधन हो गया और उनकी बौद्ध धर्म ग्रहण करने की मंशा अधूरी रह गयी।
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